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33 साल पहले 'सीता' को मिला था भरपूर आशीर्वाद, क्या अब 'राम' को हस्तिनापुर की जनता का मिलेगा प्यार?

33 साल पहले 'सीता' को मिला था भरपूर आशीर्वाद, क्या अब 'राम' को हस्तिनापुर की जनता का मिलेगा प्यार?

देश | सामान्य | 3/27/2024, 10:51 AM | Ground Zero Official

नई दिल्ली: अयोध्या के राजा भगवान राम भव्य मंदिर में विराजे हैं तो टीवी सीरियल रामायण में भगवान की भूमिका निभाने वाले राम चुनावी मैदान में हैं। केंद्र में लगातार 10 साल से सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अरुण गोविल को उत्तर प्रदेश के मेरठ लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में चर्चा तेज हो गई है कि आखिर भगवान राम हों या उनका रूप धारण करने वाले 'सीरीयल के राम', वनवास तो दोनों को झेलना पड़ा। दरअसल, रामनंद सागर की धारावाहिक रामायण में रावण, सीता और हनुमान की भूमिका निभाने वाले कलाकारों को दशकों पहले राजनीति के मैदान में उतार दिया गया था। रावण का किरदार निभाने वाले अरविंद त्रिवेदी हों या सीता की भूमिका में करोड़ों दिलों को जीतने वालीं दीपिका चिखलिया या फिर अपने उच्च कोटि के अभिनय से एक अलग छाप छोड़ने वाले हनुमान यानी दारा सिंह हों- सभी को बीजेपी ने ही राजनीति के मैदान में उतारा था, लेकिन अरुण गोविल अछूते रह गए थे

रावण और सीता ने 1991 में ही दर्ज की थी जीत

कहा जाता है कि रामायण की लोप्रियता के कारण राजनीतिक दलों ने भांप लिया था कि इनके किरदार वोट झटकने में बहुत कारगर होंगे। हुआ भी यही। बीजेपी ने जब 1991 में अरविंद त्रिवेदी और दीपिका चिखलिया को गुजरात की लोकसभा सीटों क्रमशः साबरकांठा और वडोदरा से चुनाव मैदान में उतारा तो रिजल्ट आने पर दोनों अपेक्षा पर खरे उतरे। अरविंद त्रिवेदी और दीपिका चिखलिया 1991 में अपनी-अपनी सीटों पर जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे। वहीं, 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने दारा सिंह को राज्यसभा सांसद बना दिया।

यूं लंबा चला पर्दे के राम का राजनीतिक वनवास

सवाल है कि अरुण गोविल तो राम की केंद्रीय भूमिका में थे, तो किसी दल ने उन्हें राजनीति में लाने की कोशिश क्यों नहीं की? कहा जाता है कि ऐसा हुआ था। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अरुण गोविल पर पहले ही बाजी लगा दी थी। इंडिया टुडे ने साल 1988 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि कांग्रेस ने अरुण गोविल को पार्टी में शामिल कर लिया। हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस पार्टी उन्हें इंदौर से टिकट देना चाहती थी। लेकिन कहा जाता है कि अरुण गोविल अपनी छवि को लेकर इतने सतर्क थे कि उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। दरअसल, आज भी अरुण गोविल की छवि ऐसी है कि कई लोग उन्हें देखते ही हाथ जोड़ लेते हैं।

अरविंद त्रिवेदी और दारा सिंह तो अब हमारे बीच नहीं रहे। अरविंद त्रिवेदी गुजराती सिनेमा के चर्चित कलाकार थे। उन्होंने 300 से ज्यादा हिंदी और गुजराती फिल्मों में काम किया था। त्रिवेदी ने 'रामायण' के अलावा धारावाहिक 'विक्रम और बैताल' में भी भूमिका निभाई थी। वर्ष 2002 में उन्हें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) का कार्यकारी चेयरमैन नियुक्त किया गया था। दीपिका चिखलिया ने 1991 में वडोदरा से चुनाव लड़ा तो उन्हें 2,76,038 वोट मिले जबकि विरोधी कांग्रेस उम्मीदवार को 2,41,850 वोट मिले थे। रामायण की तरह ही धारवाहिक महाभारत के कई प्रमुख किरदारों ने भी राजनीति में किस्मत आजमाई है।

क्या 'रावण' और 'सीता' का रिकॉर्ड कायम रखेंगे 'राम'?

बहरहाल, रामायण के राम के राजनीतिक वनवास की कहानी यही है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि अरुण गोविल ने भी भगवान राम की तरह मर्यादा निभाई और चुनाव मैदान में उतरने से इनकार कर दिया। हालांकि, अब बीजेपी ने उन्हें मना लिया है और गोविल अब मेरठ से लोकसभा उम्मीदवार हैं। 4 जून को जब चुनाव परिणाम आएंगे तब पता चलेगा कि क्या अरुण गोविल अपने साथी कलाकारों अरविंद त्रिवेदी और दीपिका चिखलिया की तरह ही चुनावी राजनीति का प्रारंभ जीत से कर पाते हैं कि नहीं।

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